वर्ष 2005,  करियर की दुविधा ले,  मैं दिल्ली पहुंचा किस्मत चमकाने।  ज़िन्दगी दोराहे पर थी। इंजीनियरिंग की डिग्री तो थी पर साथ ही इंजीनियरिंग की नौकरी न करने की ज़िद भी। दरअसल इस विषय से हम कभी सहज हो ही नहीं पाए सो हमसफ़र न बनाने की ठानी।

अखबार में इस्तेहार देखा, ‘ बस ग्रेजुएट चाहिए जिसे हिंदी और अंग्रेजी का ज्ञान हो। ‘ इंटरव्यू  देने पहुंचे तो पता चला कि केरल स्थित माता  अमृतानन्दमयी मठ का वह  जनसम्पर्क (पीआर ) ऑफिस था। कोई सवाल जवाब नहीं, सिर्फ एक अंग्रेजी पत्रिका थमा दी गयी और कहा गया कि अम्मा के इस प्रवचन को हिंदी में अनुवाद करो।  अनुवाद कर , कागज़ अफसर को थमा घर चल पड़े।  दो दिन बाद कॉल आई कि आपको सेलेक्ट किया जाता है, सो ऑफिस आकर जोइनिंग की औपचारिकता पूरी करें।  बड़ी उत्सुकता जगी कि कौन सा तीर मार दिया कि नौकरी एक ही बार में पक्की हो गई ।

मेरी अनुवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए बॉस ने कहा , ” यूँ  तो हमने बाकि प्रत्याशिओं  से भी अनुवाद करवाया पर आपका बड़ा प्रभावशाली लगा। बाकिओं ने सिर्फ शब्द से  शब्द का अनुवाद किया पर आपने लेखक के सन्देश व भाव को समझकर अपने ही सरल शब्दों से लेख की अभिव्यक्ति बड़ी ही स्पष्टता से की।”   अनुवाद का मेरा पहला अनुभव यह सीखा  गया  कि चाहे आप किसी भी भाषा में लेख या अनुवाद करें, ज़रूरत यह है कि सन्देश व भाव में स्पष्टता एवं गहराई हो तथा भाषा में सरलता हो ताकि पाठक में रूचि उत्पन्न हो सके और वह लेख से प्रभावित हो उससे एक जुड़ाव महसूस करे।

अनुवादक के तौर पर मेरी पहली नौकरी ने मुझे पीआर इंडस्ट्री की नई दुनिया में प्रवेश कराया।  केरल में अम्मा के मठ से आई हुई हरेक प्रेस विज्ञप्ति तथा फीचर को मुझे हिंदी में अनुवाद करना था।  उसके बाद रफ़ी मार्ग स्थित आईएनएस बिल्डिंग (इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी ) में जाकर हरेक प्रांतीय व राष्ट्रीय अखबार एवं पत्रिका के संपादक तथा पत्रकारों को हिंदी व अंग्रेजी की प्रेस विज्ञप्ति देकर उसे प्रकाशित करने का अनुरोध करना पड़ता था।  मीडिया राउंड, प्रेस कांफ्रेंस, मीडिया इंटरव्यू, FAM टूर  इत्यादि पीआर के व्यवसायिक शब्दों से भी परिचित हुआ ।

जब पहली बार मेरे हिंदी अनुवाद को बिना कुछ काटे (एडिट)  हूबहू लखनऊ की प्रसिद्ध हिंदी दैनिक ‘स्वतंत्र भारत’ में प्रकाशित किया गया तब काफी संतोष मिला।  इस छोटी सी सफलता ने मुझे हिंदी और अंग्रेजी में लेख लिखने तथा पीआर इंडस्ट्री में करियर बनाने को प्रेरित किया।  कालांतर में मैंने विभिन्न विषयों पर व्यक्तिगत विचार अपने अनोखे अंदाज़ से अपने ब्लॉग http://abhivyakti-sameer.blogspot.com/ से व्यक्त करने लगा।

इसी तरह भाषा के प्रति बचपन के लगाव ने मुझे आजीविका और व्यवसायिक अभिवृद्धि के नए अवसर व आयाम प्रदान किये।

समीर कुमार दास

डिप्टी डायरेक्टर,स्कूल ऑफ़ लैंग्वेजेज

कीट यूनिवर्सिटी, भूवनेश्वर, ओडिशा